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सुख की चाह

एक समय की बात है एक विद्वान जा रहा था , मार्ग मे उसे एक मजदूर नीम के पेड़ के नीचे सोता हुआ दिखाई दिया।
विद्वान ने उसे जगाते हुए कहा - "कुछ काम क्यो नही करते हो ?"
मजदूर ने लेटे हुए कहा - "पेट भरने भर मजदूरी कर लेता हूँ ।"
"क्या तुम नही चाहते और अधिक काम करो "-विद्वान ने उसे धिक्कारते हुए कहा ।
"उससे क्या होगा !"
"अधिक कार्य से अधिक धन की प्राप्ति होगी । "
"उससे क्या होगा !"
"अधिक धन से अन्न-भूमि की अधिक प्राप्ति होगी "
"उससे क्या होगा !"
"समाज मे तुम्हारी प्रतिष्ठा बढेगी , मान-सम्मान बढेगा "
"उससे क्या होगा !"
"उससे तुम्हे सुख की प्राप्ति होगी "- विद्वान ने खिसियाते हुए कहा।
"वही सुख तो मै ले रहा था , और आपने मुझे जगा दिया "
विद्वान निरुत्तर हो अपने मार्ग पर चला गया ।

1 टिप्पणी:

  1. सुख तो सुख , ये मेरा और तेरा अच्छा बुरा कैसे हो सकता है
    आपको पढ़कर उर्जा मिलती है , यूँ ही लिखते रहिये

    मयूर
    अपनी अपनी डगर
    उड़न खटोले का स्वागर है

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