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सररर से हैप्पी होली तक

लो भईया होली का मौसम फिर आ गया ! महंगाई ने बोला -सररर, हमने बोला- न भईया केवल हैप्पी होली !आटा दाल चीनी के दर्शन होते बहुत थोढ़े कि बोलो सररर, तेंदुलकर ने लगाया दोहरा कि बोलो सररर । थोड़ी देर के लिए महंगाई गए भूल कि बोलो सररर। खुमार हटा तो देखा फिर वही महंगाई कि बोलो सररर, धरती पर जा गिरे , होश सम्हाला ,टोपी सम्हाली हाथ जोड़ा चेहरे पर कार्टून सी बनावटी मुस्कान लिए बोला -"भईया केवल हैप्पी होली ।"

मंत्र

नौकरी करते हुए मनुष्य ऐसे परजीवी (पैरासाइट्स) की भांति होता है, जो अपना जीवनयापन तो कर सकता है लेकिन अपना विकास नहीं कर सकता है।

मध्यम आय वर्ग की विशेषता होती है कि वह अपनी आय का लगभग पूरा भाग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों कों पूरा करने ,अपने लिए जमीन खरीद कर मकान बनाने और जीवनयापन करने मे खर्च कर देते है ।

जिससे जाने-अनजाने और मजबूरी मे अपनी पूँजी से दूसरो को अमीर बनाते है। जिससे उनकी अगली पीढ़ी मे रोजगार की समस्या फिर जस की तस बनी रहती है। यह एक ऐसा दुष्चक्र है जो आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता है।