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सुख की चाह

एक समय की बात है एक विद्वान जा रहा था , मार्ग मे उसे एक मजदूर नीम के पेड़ के नीचे सोता हुआ दिखाई दिया।
विद्वान ने उसे जगाते हुए कहा - "कुछ काम क्यो नही करते हो ?"
मजदूर ने लेटे हुए कहा - "पेट भरने भर मजदूरी कर लेता हूँ ।"
"क्या तुम नही चाहते और अधिक काम करो "-विद्वान ने उसे धिक्कारते हुए कहा ।
"उससे क्या होगा !"
"अधिक कार्य से अधिक धन की प्राप्ति होगी । "
"उससे क्या होगा !"
"अधिक धन से अन्न-भूमि की अधिक प्राप्ति होगी "
"उससे क्या होगा !"
"समाज मे तुम्हारी प्रतिष्ठा बढेगी , मान-सम्मान बढेगा "
"उससे क्या होगा !"
"उससे तुम्हे सुख की प्राप्ति होगी "- विद्वान ने खिसियाते हुए कहा।
"वही सुख तो मै ले रहा था , और आपने मुझे जगा दिया "
विद्वान निरुत्तर हो अपने मार्ग पर चला गया ।

जूते की चाह

जूता मै चमड़े की खाल प्रिये ,
जिससे निकला उसकी 'आह' प्रिये ,
चाह नही मै पैरो मे घिसा जाऊ ,
चाह नही मै ट्रक के आगे लटका जाऊ ,
चाह नही मै बुरी नजर उतारता रहूँ ,
चाह नही मै मिर्गी को भागता रहूँ ,
जूता मै चमड़े की खाल प्रिये ,
जिससे निकला उसकी 'आह' प्रिये ,
कीमत मेरी 'महामना' जाने ,
नवाब के जूते की कीमत सरेआम लगवाई ,
जूता मै चमड़े की खाल प्रिये ,
जिससे निकला उसकी 'आह' प्रिये ,
चाह लगू भ्रष्टाचारियो के मुँह पर
चाह लगू घूसखोरों के मुँह पर ,
चाह लगू कन्याभ्रूण हत्यारों के मुँह पर ,
चाह लगू मिलावटखोरो के मुँह पर ,
जूता मै चमड़े की खाल प्रिये ,
जिससे निकला उसकी 'आह' प्रिये ,
क्रमश: .......

मन की चाह

ख्यालो की उड़ान लिए ,
बैठ खटोले मे निकला ,
विश्व भ्रमण की चाह लिए ,
मै मन अरमान लिए ,
देखू नर-नारायण को ,
खेतो मे जो मर मिटता है ,
दाता है जो अन्न का ,
किंतु खाली है जिसका पेट ,
ख्यालो की उड़ान लिए ,
बैठ खटोले मे निकला ,
विश्व भ्रमण की चाह लिए ,
मै मन अरमान लिए ,
देखू उन जंगलो को ,
सिकुडे हर पल भेंट चढ़े ,
मानव विकास की बेदी पर ,
कुर्बानी जिसकी 'आह' लिए ,
ख्यालो की उड़ान लिए ,
बैठ खटोले मे निकला ,
विश्व भ्रमण की चाह लिए ,
मै मन अरमान लिए ,
देखू उन नदियों को ,
जो विश्व-विकास की गाथा थी ,
पानी जिसका हर पल हुए ,
दूषित,कलुषित और कम हुए ,
ख्यालो की उड़ान लिए ,
बैठ खटोले मे निकला ,
विश्व भ्रमण की चाह लिए ,
मै मन अरमान लिए ,
क्रमश: .......